हकीकत : राज्य के 534 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में से एक भी चालू हालत में नहीं हैं. रेफरल अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 466 है, मगर कार्यरत मात्र 67 हैं. ऐसा ही हाल अनुमंडल अस्पतालों और सदर अथवा जिला अस्पतालों का भी है. राज्य के 13 मेडिकल कॉलेजों में से भी केवल 10 ही फंक्शनल हैं.
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बिहार के समृद्ध इतिहास को लच्छेदार बनाकर अपने भाषण को धार देने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विकास किया, इसमें कोई संकोच नहीं। पर अब विकास की रफ्तार इतनी सुस्त पड़ गई है कि आमजन झटपटा रहा है। जी हां, अगर आप बिहार में हैं और सरकार के भरोसे बेहतर इलाज की उम्मीद रखते हैं तो यह बेमानी होगी। पटना के बड़े-बड़े फ्लाईओवर देख इतराने वाले वहां के लोगों को इसका कम ही अहसास होता है। दरअसल, उन्होंने अव्यवस्थाओं को अपनी नियती मान ली है। खैर, कोरोना के इस काल में स्वास्थ्य सेवाओं की नब्ज टटोलनी जरूरी है।
क्या आपको पता है… राज्य के सबसे बड़े कोरोना अस्पताल एनएमसीएच के एनेस्थेशिया विभाग में कोई भी एक सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर नहीं है, जबकि पद सृजित 25 हैं. पटना मेडिकल कॉलेज में भी 40 फीसद डॉक्टरों की कमी है. दरभंगा मेडिकल कॉलेज में भी 50 फीसदी डॉक्टरों की कमी है. ये तो उदाहरण भर है। राज्य में डॉक्टरों के जो स्वीकृत पद हैं, वे राज्य के अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों के आधार पर बनाए गए हैं. गौरतलब है कि अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों की संख्या आधी से भी कम है. पूरे बिहार का यही हाल : 2011 की जनगणना के हिसाब से देखें तो स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों की जरूरत लगभग दोगुनी से ज्यादा है. लेकिन यहां जरूरत की बात करना भी बेमानी लगता है। जो केंद्र और अस्पताल पहले से हैं वे भी नहीं चल पा रहे हैं क्योंकि डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ की 60 फीसदी से भी अधिक की कमी है. अब जानिए स्वास्थ्य मंत्री का हाल :बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने इसी साल मार्च में विधानसभा के अंदर राजद के विधायक शिवचंद्र राम की तरफ से उठाए गए प्रश्न का जवाब देते हुए कहा था- “राज्य में चिकित्सा पदाधिकारी के कुल स्वीकृत पद 10609 हैं. जिसमें से 6437 पद रिक्त हैं. इससे साफ है- 61 प्रतिशत पद रिक्त हैं। केवल डॉक्टर ही नहीं राज्य में मेडिकल स्टाफ और नर्सों की भी भारी कमी है. यहां स्टाफ नर्स ग्रेड के कुल स्वीकृत पद 14198 हैं, लेकिन कार्यरत बल महज 5068 है. एनएनएम नर्स के भी 10 हजार से अधिक पोस्ट खाली हैं. विधानसभा में मार्च में ही स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा था, “रिक्त कुल 6437 चिकित्सकों अर्थात 2425 विशेषज्ञ चिकित्सकों और 4012 सामान्य चिकित्सकों की नियुक्ति हेतु अधियाचना बिहार तकनीकी सेवा आयोग को भेजा जा चुका है. 30 जुलाई को मंगल पांडेय ने ट्वीट करके यह जानकारी दी कि 13 विभागों में 929 विशेषज्ञ चिकित्सकों की प्रथम नियुक्ति कर पदस्थापना का आदेश जारी कर दिया गया है. 28 हजार 391 लोगों पर सिर्फ एक डॉक्टर :विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के मुताबिक़ प्रति एक हज़ार की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए. इंडियन मेडिकल काउंसिल भी कहता है कि 1681 लोगों के लिए एक डॉक्टर की आवश्यकता है. इस लिहाज़ से 2011 की जनगणना के मुताबिक़ बिहार में एक लाख से अधिक डॉक्टर होने चाहिए. लेकिन नेशनल हेल्थ प्रोफ़ाइल के आँकड़ों के अनुसार बिहार में 28 हजार 391 लोगों पर सिर्फ एक डॉक्टर हैं. अब इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि बिहार में रहकर आपका इलाज होगा भी तो कैसे।
——————– बिहार में सबसे ज्यादा डाक्टरों की मौत : कोरोना वायरस के ऐसे विकट समय में एक तो पहले से राज्य के अंदर डॉक्टरों की भारी कमी है. ऊपर से बिहार में डाक्टरों में संक्रमण के मामले सबसे ज्यादा आ रहे हैं. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रदेश सचिव डॉ. सुनील कुमार ने बताया कि यहां कोरोना वायरस के कारण डॉक्टरों की मौत का प्रतिशत भी देश के बाकी राज्यों की तुलना में अधिक है. 250 से अधिक डॉक्टर कोरोना संक्रमित हो चुके हैं. डॉ. सुनील कहते हैं, “बिहार में कोरोना वायरस की चपेट में आकर डॉक्टरों की मौत का प्रतिशत 4.42 है. जबकि राष्ट्रीय औसत 0.5 फ़ीसद है. सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में डॉक्टरों की मौत का प्रतिशत 0.15 है. दिल्ली में 0.3 फ़ीसद है. कर्नाटक में 0.6 फ़ीसद, आंध्र प्रदेश में 0.7 फ़ीसद और तामिलनाडु में 0.1 फ़ीसद है.” डॉक्टरों में संक्रमण के लिए सरकार ज़िम्मेदार? : इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने बिहार में डॉक्टरों में संक्रमण के मामले सबसे ज्यादा मिलने का जिम्मेदार बिहार सरकार को ठहराया है. एसोसिएशन का आरोप है कि जो मंत्री और नेता अस्पतालों में विजिट करने आते हैं उनके लिए डॉक्टरों से ज्यादा बेहतर गुणवत्ता वाले सुरक्षा उपकरणों (पीपीई किट वगैरह) का इंतजाम रहता है।