शराब कारोबार के हाइवे की रेड सिग्नल है संगीता

जहां जाती है वहीं सुलगा देती है दारुबंदी की चिनगारी

जहां जाती है वहीं सुलगा देती है दारुबंदी की चिनगारी

नागपुर : संकल्प को हिम्मत का साथ। जिस राह पर चल पड़ी उसपर पीछे मुडक़र कभी नहीं देखा। कम समय में ही आंदोलन की नई मिसाल गढकर हजारों परिवारों की दुआओं में सराबोर है वह। पहली अप्रैल से हाइवे पर दारुबंदी लग गई। वह पहले से ही शराब कारोबार के हाइवे की रेड सिग्नल बनी हुई थी। संगीता पवार। किसान आत्महत्या के लिए पहचाने जानेवाले यवतमाल जिले में जन्मी संगीता अब महाराष्ट्र में दारुबंदी आंदोलन की पहचान व प्रेरणा बन गई है। जहां जाती है वहीं संगीता दारुबंदी की चिनगारी सुलगा देती है। वह उन गांवों तक पहुंचती है जहां प्रशासन के लोगों बरसो से नहीं पहुंच पाए। कहीं पहुंचे भी तो केवल गांव देखकर लौट आए।

घुमंतू जनजाति के वडार समुदाय की कुछ जनसंख्या यवतमाल जिले के पठार क्षेत्रों में है। इसी समुदाय में संगीता का जन्म 1985 को हुआ था। परिवार जिस परिसर में रहता था वह पिछड़ेपन की मलीन चादर समेटे हुए था। संगीता ने मेडिकल लेबोरेटरी एंड टेक् नालाजी में डिप्लोमा किया है। उसके पिता ने फौज से सेवानिवृति लेकर ठेकेदारी का काम शुरु किया था। बकौल संगीता-शराब की लत ने पिताजी को क्या जकड़ा,हमारे परिवार की खुशियों को ही लकवा मार गया। शराब के नशे में पिता की असामाजिक वृतियों के निशान घर के बर्तनों,अन्य वस्तुओं से लेकर मां के शरीर पर दिखने लगे थे। शराब ने पिताजी की जान ले ली। मां भी मानसिक संतुलन संभालकर नहीं रख सकीं। छोटे भाई ने भी हाथ में बोतल थाम ली। पड़ोस का भी यही हाल था। लिहाजा शराब के विरोध में लडऩे का संकल्प लिया।

संगीता ने आरंभ में शराब पीडि़त महिलाओं को संगठित किया। गांव परिसर में अवैध हाथ भट्टी पर धावा बोला। यवतमाल जिले के ही रुई गांव में सबसे पहले हाथ भट्टी बंद करायी। बाद में संघर्ष समिति स्थापित की गई। अवैध शराब अड्डों को बंद कराने का सिलसिला चल पड़ा। शराब कारोबारियों से धमकी मिलने लगी। हमले के प्रयास हुए। संगीता अपने मार्ग पर आगे बढ़ती गई। यवतमाल के पास अर्जुननगर में ५० वर्ष पुरानी देशी शराब की दुकान को बंद कराने के बाद संगीता की टीम चर्चा में आ गई। दुकान बंद कराने के लिए पहले जिलाधिकारी को पत्र लिखा गया। फिर उभी बाटली आडवी बाटली बैनर पर मतदान कराया। उभी बाटली का मतलब है खड़ी बोतल व आड़वी बाटली यानी सामान्य रखी बोतल। सामान्य मुद्रा में रखी बोतल के पक्ष में अधिक मतदान हुआ। लिहाजा तय हुआ कि गांव के लोग दुकान बंद कराना चाहते है। जिला प्रशासन ने दुकान बंद करा दी। उसके बाद व्यसन मुक्ति आंदोलन खड़ा हुआ। २० अप्रैल २०१५ को संगीता के नेतृत्व में यवतमाल की सडक़ पर 50 हजार के करीब महिलाओं ने प्रदर्शन किया। दारुबंदी की मांग की गई। उसी दौरान तत्कालीन राजस्व मंत्री एकनाथ खडसे के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के कुरहा काकोडा गांव में दारुबंदी आंदोलन हुआ। खडसे तक राज्य सरकार में मुख्यमंत्री के बाद दूसरे बड़े नेता माने जाते थे। खडसे ने दारु दुकानदारों को सहयोग देने का प्रयास किया। लेकिन उभी बाटली आडवी बाटली मतदान में दारु दुकानदार पराजित हो गए। उच्च न्यायालय के निर्देश पर कुरहा काकोडा की चारों दारु दुकान बंद करा दी गई। फिलहाल संगीता दारुबंदी के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में अभियान चला रही है। कई जोखिमों व चुनौतियों का सामना करते हुए वह दुर्गम क्षेत्रों में शाम व रात के समय सभाएं, बैठकें लेकर महिलाओं को आंदोलन से जुडऩे के लिए आव्हान करती है।

आंदोलन के चलते हाइवे पर दारुबंदी

संगीता पवार के आंदोलन में सहयोगी उमेश मेश्राम के अनुसार आडवी बाटली आंदोलन के चलते ही हाइवे पर दारुबंदी हुई। शराबमुक्त महाराष्ट्र की मांग को लेकर दो वर्ष पहले चकाजाम आंदोलन किया गया था। २० हजार से अधिक महिलाएं आंदोलन में शामिल थी। हैदराबाद से नागपुर की ओर जा रहे केंद्रीय विधि विभाग के सचिव को चकाजाम के कारण परेशान होना पड़ा। तब केंद्रीय सचिव ने प्रदर्शनकारियों को आश्वस्त किया था कि दिल्ली में यह मांग पहुंचाएंगे। उस अधिकारी ने विधि विभाग की बैठक में यवतमाल का मामला रखा। पत्र व्यवहार किया गया। और हाइवे पर शराब की दुकानें हटाने के निणर्य की प्रक्रिया आगे बढ़ी।

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One Reply to “शराब कारोबार के हाइवे की रेड सिग्नल है संगीता”

  1. Joe says:

    Sangita pawar was a very dynamic lady but because of the dirty politics of the maharashtra politicians she could not be successful in her efforts after facing so many hurdles these politicians put Parelell protesters to defame her and because of the attitude of these politicians the poor lady who had a lot of vision for the poor and downtrodden was compelled to sit at home

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