बिहार चुनाव : खुद को डुबोने वाले जीतन राम मांझी नीतीश की नैया पार लगा पाएंगे क्या?

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महादलित वोटों पर नीतीश की नजर, जीतन राम मांझी के लिए खोले दरवाजे

पटना। अक्टूबर या नवंबर तक बिहार में चुनाव हो सकते हैं। इसलिए सियासी गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं। भले ही पूरे देश में कोरोना संक्रमण से निपटने की तैयारियों को अंजाम दिया जा रहा है, पर बिहार में चुनाव ही प्राथमिकता में है। सुशासन बाबू (नीतीश कुमार) की राह इस बार थोड़ी मुश्किल है, इसलिए उन्होंने भी अपनी गोटियां सजानी शुरू कर दी है। इसी कड़ी में उन्होंने हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को जेडीयू के साथ जोड़ लिया है। दरअसल, मांझी को साथ लेकर नीतीश ने महादलित वोटों पर निशाना साधा है। 2015 के विधान सभा चुनाव में 21 सीटों पर किस्मत आजमाने वाली जीतनराम मांझी की पार्टी के खाते में एक ही सीट आ पाई थी। अब इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह अपनी डूबती नैया को पार तो लगा नहीं पाए, नीतीश के खेवनहार कैसे बनेंगे?

इतना जरूर है कि गया के आसपास के इलाकों में उनका अच्छा प्रभाव माना जाता है। मांझी महादलितों में मुसहर समुदाय से आते हैं. राजनीति में आने के बाद से वे फ़तेहपुर, बाराचट्टी, बोधगया, मखदूमपुर और इमामगंज से भी चुनाव लड़े और जीत हासिल की. हालांकि, गया सीट से सांसद के रूप में निर्वाचित होने का उनका सपना अब तक पूरा नहीं हो सका है। जीतनराम मांझी ने कहा है कि उनकी पार्टी जेडीयू के साथ मिल-जुलकर चुनाव लड़ेगी। बिहार विधानसभा चुनावों में सीट शेयरिंग को लेकर उनकी अभी कोई चर्चा नहीं हुई है। हालांकि, उनकी एनडीए में एंट्री को लेकर मामला अभी पेचीदा बना हुआ है.

मांझी भले ही कह रहे हैं कि वो एनडीए में आ गए हैं, लेकिन एनडीए के एक मुख्य घटक दल राम विलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) को उनके आने पर आपत्ति है। एलजेपी के उपाध्यक्ष और मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता ए.के बाजपेई कहते हैं, “एनडीए शब्द इस्तेमाल न करें, क्योंकि मांझी की न तो बीजेपी से कोई बात हुई है और न ही एलजेपी से बात हुई है। जेडीयू से अगर उनकी कोई बात हुई है तो वे जानें और जेडीयू जाने। एनडीए की जब बात होगी तो हम तीनों पार्टियां बैठेंगी और तब फै़सला होगा।”

2013 में एनडीए से अलग चले गए नीतीश कुमार की अगुवाई वाले जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने 2017 में फिर से एनडीए से हाथ मिला लिया। 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 54 सीटें ही मिली थीं। तब नीतीश कुमार की पार्टी ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था और सत्ता हासिल की थी। अब चूंकि, जेडीयू फिर से एनडीए के तहत चुनाव लड़ रही है, ऐसे में बीजेपी हर हालत में बिहार में सत्ता को कायम रखना चाहती है। दूसरी ओर, लंबे वक्त से मुख्यमंत्री बने हुए नीतीश कुमार के लिए इस बार पहले के चुनावों के मुकाबले मुश्किलें कहीं ज़्यादा हैं।

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