उत्तरी कोलकाता के कुम्हार टोली (कुमारटुली) की गलियां सूनी हैं। हर साल इस मौसम में इस इलाके की रौनक देखते ही बनती है, पर कोरोनाकाल की काली छाया ने इस पूरे इलाके को बेरौनक कर दिया है। दरअसल, कोरोना महामारी के कारण पूजा पंडाल समितियों ने सादगी से दुर्गा पूजा के आयोजन का निर्णय लिया है। इसलिए भव्य पंडालों न निर्माण होना है, न ही भव्य मूर्तियां ही दिखेंगी। इसका सीधा असर कारीगरों पर पड़ा है।
कोलकाता : 34 वर्षीय कामत मूर्ति कारीगर हैं। यह काम पुश्तैनी है। हर साल दुर्गा पूजा का इंतजार रहता है। इस समय की कमाई से ही पूरे साल का इंतजाम हो जाता है। पर इस साल ऐसा नहीं होगा। न ही पहले के वर्षों जैसे अच्छे ऑर्डर मिले हैं, न ही बेहतर कमाई हुई है। अपने साथी कलाकारों का खर्च निकालना तक नामुमकिन हो रहा है। यह कहानी केवल कामत की नहीं है। कुछ इसी तरह की परेशानी से किशोर बनर्जी भी दो-चार हो रहे हैं। इस सीजन के भरोसे सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलता था। इस साल ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। पूरे विश्व में मशहूर है कोलकाता की पूजा : कोलकाता की दुर्गा पूजा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. शारदीय नवरात्र का उत्सव बंगाल खासकर कोलकाता के लिए महात्सव का काल है, लेकिन कोरोना महामारी के कारण इस साल दुर्गा पूजा का उत्सव बहुत ही साधारण तरीके से मनाया जाने वाला है. चूंकि कोलकाता और पूरे बंगाल में पूजा पंडालों में खास सजावट होती है और बहुत ही भव्य प्रतिमाओं का निर्माण होता रहा है, लेकिन इस बार साधारण तरीके से पूजा होने के कारण बंगाल के दुर्गा पंडाल कारीगर भारी संकट में आ गए हैं. दुनियाभर में फैली इस महामारी की वजह से इस साल कोलकाता में दुर्गापूजा का आयोजन छोटे पैमाने पर हो रहा है. बहुत सी दुर्गापूजा कमेटियां इस साल पंडाल का निर्माण नहीं करेंगी और क्लब भवन में ही पूजा का आयोजन होगा. जिन कमेटियों ने पंडाल बनाने का निश्चय किया है वे भी साधारण तरीके से ही पूजा करेंगी. इस स्थिति में पंडाल में में काम करने वाले कारीगर खाली हाथ हैं और उनके सामने रोजगार का संकट है. कारीगरों की मांग कम : बंगाल के वीरभूम, पुरुलिया, नदिया, मुर्शिदाबाद, पूर्व व पश्चिम मेदिनीपुर, उत्तर व दक्षिण 24 परगना समेत विभिन्न जिलों से हर साल हजारों की संख्या में पंडाल कारीगर कोलकाता आते हैं लेकिन इस साल पंडालों की संख्या कम होने व आकार छोटा होने के कारण ज्यादातर कारीगरों की मांग नहीं है. छोटा हो गया पंडाल का आकार : मध्य कोलकाता की यंग ब्वायज क्लब सर्वजनीन दुर्गापूजा समिति के पदाधिकारी ने बताया-‘एक-एक पूजा पंडाल में पहले जहां 25-26 कारीगर काम किया करते थे, वहां इस साल महज सात से आठ कारीगर ही हैं. चूंकि पंडाल का आकार छोटा है इसलिए उन्हें तैयार करने के लिए ज्यादा कारीगरों की जरूरत नहीं पड़ रही.पंडाल कारीगरों की संख्या कम होने की एक बड़ी वजह शारीरिक दूरी के नियम का पालन करना भी है.ज्यादा कारीगरों को रखकर पंडाल का निर्माण कार्य नहीं कराया जा सकता क्योंकि इससे कोरोना का संक्रमण फैलने का खतरा है. प्रतिमाओं की बुकिंग तक नहीं : कारीगरों का कहना है कि बुकिंग और एडवांस पेमेंट के बिना वे समय पर मूर्ति बनाने का काम कैसे निपटा सकेंगे। कारीगर रोहिताश मुरू ने बताया, इस साल महालया के अवसर पर चक्षुदान की परंपरा का पालन नहीं किया जा सका, क्योंकि ज्यादातर प्रतिमाएं अभी तक बनी ही नहीं हैं। कई पूजा आयोजकों ने प्रतिमाओं की बुकिंग नहीं की है, पैसे नहीं मिले हैं। सालों से महालया के दिन देवी दुर्गा की आंखें बनाई जाती हैं, जिसे चक्षुदान के नाम से जाना जाता है। यह प्रतिमा निर्माण की प्रक्रिया का आखिरी चरण होता है।
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