गहनों का मरज

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गहनों का मरज न जाने इस दरिद्र गरीब  देश मे कैसे फैल गया | जिन लोगों को भोजन का ठिकाना नहीं ,वे भी गहनों के पीछे प्राण देते है |हर साल अरबों रुपये सोना -चाँदी खरीदने मे व्यय हो जाते है | उन्नत देशों मे धन व्यापार मे लगता है ,जिससे लोगों की परवरिश होती है और धन बढ़ता है | हमारे भारत वर्ष मे धन श्रृंगार मे खर्च होता है | इस मरज की दवा तो अब तक कोई ढूढ नहीं पाया है | सारे वैध , हाकिम , डॉक्टर इस मरज़ की काट खोजने मे आज तक विवश दिखाई परते है क्यूंकि ये उनकी भी आपबीती है | अब इन्सान को अपना विवेक इस्तेमाल कर इस ललक से बाहर आना चहिये | इस ललक ने कई लोगों को अपराधी बना दिया , कितने घुसखोर बन गये ,कितनो का घर टूट गया |

भारतीय माध्यम वर्ग की शादी का बजट गहनों के कारण आसमान छूने लगता है | गहने हलके होने से वधु को उस समय  तक ताने सुने परते जब तक की वो अपने बहु को बातें सुनाने लायक न हो जाये | ये आभूषण कभी कभी बैंक की लाकर्स की शोभा वर्षोँ तक बढ़ाने के बाद एक दूसरी की अमीरी गरीबी  तय करने के लिए कुछ विशेष मौके पर उससे बाहर आते है | किसने क्या पहन रखा था उसकी चर्चाए अभी होती ही रहती है तब तक वे आभूषण अलमारी के किसी कोने  या  बैंक लाकर्स की शोभा फिर से बढ़ाने लगते है |

गहनों की इस मृगतृष्णा से  मोहभंग कर खुशहाली की तरफ अपना कदम बढ़ाये | कभी कोई धातु आपकी अमीरी गरीबी ,आपकी खुशहाली को तय नहीं कर सकता ,आपकी खुशहाली आपकी जिन्दादिली तय करेगी |

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