नायाब टोपी

एक आदमी को मौके-बे-मौके बहुत उपहार मिले, लेकिन उन्हें सम्हाल कर रखने या उनका सदुपयोग करने की योग्यता उसमें नहीं थी। नतीजा यह हुआ कि बहुतेरे डिब्बे बिना खोले ही पड़े रहे। उन्हीं में एक बंद पैकेट उस कोने में फेका हुआ था जहाँ एक टूटी तिपाई, एक फटा छाता और ऐसी ही बेकार चीजे अरसे से पड़ी थीं। पैकेट के अंदर की चीज दम साधे, अपनी मुक्ति की प्रतीक्षा करती रही।
एक दिन उस आदमी का ध्यान उधर गया; उसने डोरी और रैपर खोल कर उस चीज को डिब्बे से बाहर किया और अपने पांव में घुसाने लगा। वह दायें-बाएं किसी पेअर में नहीं आई, इसके अलावा उसने देखा कि उसकी जोड़ी तो है ही नहीं। सो ऐसी बेढंगी चीज को लेकर वह क्या करता?
ऐसी ही बहुतेरी बेकार पड़ी चीजों के साथ वह उसे भी उठा कर वहां दाल आया, जहाँ तमाम लोग कूड़ा फेकते थे।
उधर से एक राहगीर गुजर रहा था।
कूड़े की चोटी पर चमकती इस चीज ने उसे आकर्षित किया। पास जा कर देखा, उठा कर सावधानी से झाड़ा-पोछा और अपने सिर पर पहन लिया। मन के आइने में झांक कर, वह अपनी फबन पर मुस्कराया और आगे बढ़ गया।
यह सारा कार्य-व्यापार वह आदमी अपनी खिड़की से देख कर मन ही मन कुढ़ रहा था।
राहगीर को पुकार कर अपनी चीज वापस ले ले, उसके मन में यह सोच भी उभरा, लेकिन वह आदमी तो अपनी मस्ती में बहुत दूर निकल चुका था और इस बात का भी भरोसा नहीं था कि मांगने से वह लौटा ही देता।
अब सिवा मन मसोस कर रह जाने के कोई उपाय नहीं था। क्रोध, ईर्ष्या या पछतावे से उसे वह चीज वापस मिलने वाली नहीं थी।
दरअसल, जिस चीज को उसने एक पैर की बेढंगी जूती समझ कर फेंक दिया था, वह एक नायाब टोपी थी।

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top