पश्चिम बंगाल और ओडिसा की गर्भवती माताएं खतरे में

लॉकडाउन ने न सिर्फ लोगों की नौकरियां छीनी हैं, बल्कि गर्भवती माताओं की सेहत भी खतरे में डाली हैं। गांव कनेक्शन मीडिया संस्थान के सर्वे में यह बात सामने आई है। राज्यवार आंकड़ों ने इसकी पोल खोली है। प्रसव पूर्व जांच और टीकाकरण में ओडिसा और पश्चिम बंगाल फिसड्डी साबित हुए हैं। राजस्थान की स्थिति सबसे बेहतर है। इसके बाद उत्तराखंड का नंबर आता है। इससे साफ है कि लॉकडाउन के दौरान सरकार ने गर्भवती माताओं का ध्यान नहीं दिया। इसकी वजह से इन महिलाओं की सेहत पर खतरा मंडराना लाजिमी भी है। प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान की वेबसाइट के अनुसार, हर साल लगभग 44000 महिलाएं गर्भावस्था संबंधी कारणों के कारण मर जाती हैं।
नई दिल्ली। राज्यवार आंकड़ों की प्रसव पूर्व जांच और टीकाकरण होने की बात करें तो सबसे ज्यादा टीकाकरण राजस्थान- 87 प्रतिशत, उत्तराखंड- 84 प्रतिशत, बिहार- 66 प्रतिशत, मध्य प्रदेश- 64 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश- 57 प्रतिशत, असम- 55 प्रतिशत, झारखंड- 52 प्रतिशत और केरल में 48 प्रतिशत हुआ। सबसे कम टीकाकरण और प्रसव पूर्व जांच ओडिसा में 33 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 29 प्रतिशत हुआ। मीडिया संस्थान गांव कनेक्शन के सर्वे में इसका खुलासा हुआ है।
राजस्थान में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहीं छाया पचौली इन आंकड़ों पर कहती हैं, “ये आंकड़े शायद इसलिए इतने ज्यादा आये हैं क्योंकि राजस्थान में सामुदायिक और प्राथमिक केन्द्रों पर ये जांचें कभी बंद नहीं रहीं। शिथिल जरूर पड़ीं। गांव स्तर पर जो सेवाएं बंद थीं, जून से वो भी शुरू हो गईं। सेवाएं बंद भले नहीं थीं, लेकिन स्वास्थ्य केन्द्रों पर लोग बहुत ज्यादा संख्या में टीकाकरण या जांच कराने नहीं पहुंचे, इसलिए ये आंकड़े मुझे थोड़े ज्यादा लग रहे हैं।” छाया प्रयास संस्था की निदेशक और जन स्वास्थ्य अभियान की राज्य संयोजक हैं। ‘जन स्वास्थ्य अभियान’ स्वास्थ्य के क्षेत्र में एडवोकेसी करने वाली एक संस्था है। इस संस्था ने एक सर्वे के बाद सरकार को भेजे एक पत्र में लिखा था कि मार्च महीने में राजस्थान में करीब 2.5 लाख से ज्यादा गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व जांचे नहीं हुई हैं। ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं जल्द शुरू करने की मांग की थी। छाया पचौली बताती हैं, “लॉकडाउन के दौरान राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में 30 आदिवासी गाँव का एक सर्वे किया गया था, जिसमें 150 गर्भवती महिलाओं की जो प्रसव पूर्व जांच होनी चाहिए वो नहीं हुई थी।”

हर साल मरती हैं 44 हजार महिलाएं : प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान की वेबसाइट के अनुसार हर साल लगभग 44000 महिलाएं गर्भावस्था संबंधी कारणों के कारण मर जाती हैं। असमय होने वाली इन मौतों को रोकने के लिए 31 जुलाई 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान’ की शुरुआत की गयी। इस अभियान के तहत हर महीने की नौ तारीख को हर राज्य में गर्भवती महिलाओं की प्रसव सम्बंधी उन सभी बातों का ध्यान रखा जाता है जिससे मातृ मृत्यु दर को रोका जा सके। लेकिन लॉकडाउन में यह अभियान बंद रहा, जिसकी वजह से महिलाओं की जांचें और टीकाकरण ज्यादा नहीं हो पाया। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अंजू गुप्ता कहती हैं- नौ महीने के दौरान होने वाली जांच और टीकाकरण महत्वपूर्ण होता है। बकौल डॉ. अंजू – “गर्भवती महिला के शुरुआत के तीन महीने में ब्लड टेस्ट की जांचे जैसे-एचआईवी, ब्लड शुगर, थायराइड हो जाना चाहिए। इस समय हुए अल्ट्रासाउंड से यह पता चलता है कि बच्चा ट्यूब में है या नहीं। पांचवे महीने में दूसरा अल्ट्रासाउंड होता है, जिसमें बच्चे के शरीर के अंगों और उसके मानसिक विकास के बारे में पता चलता है।” “पहला टिटनेस का टीका तीन महीने तक और दूसरा पांचवे महीने में लग जाना चाहिए। 26 हफ्ते में एक ब्लड शुगर जांच हो जाए जिससे बच्चे और मां में डायबिटीज की संभावना के बारे में पता चल सके। साढ़े आठ महीने में एक और अल्ट्रासाउंड होता है जिससे यह पता चलता है कि बच्चा किस अवस्था में है, पैदा होने में कोई मुश्किल तो नहीं है। रूटीन जांच हर तिमाही होती है।
जांच और टीकाकरण : राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, राजस्थान के मिशन निदेशक नरेश कुमार ठकराल ने बताया, “जितने भी लेबर रूम हैं, जितने भी जिला अस्पताल हैं, स्पेशल मदर एंड चाइल्ड हॉस्पिटल हैं इनकी सेवाओं पर कोई असर नहीं पड़ा। प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर जांच और टीकाकरण कभी बंद नहीं रहा, केवल ओपीडी को कम किया गया है।” सर्वे के अनुसार गर्भवती महिलाओं की जांच और टीकाकरण रेड ग्रीन में 44 प्रतिशत, ऑरेंज जोन में 63 प्रतिशत ग्रीन जोन में 59 फीसदी हुआ है।

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