किसी राजा को अपनी रोग-मुक्ति के लिए अपने पुत्र की बलि चढ़ानी थी। इसके लिए वह अपने को तैयार नहीं कर पाया और उसने पुरोहित से इसका विकल्प जानना चाहा।
‘पुत्र क्रय भी किया जा सकता है। आप जिसे मूल्य देकर पुत्र बनाएंगे, वह भी आपका पुत्र ही हुआ।’
राजा के चर लोगों से संपर्क करने लगे। कोई अपना बेटा बलि चढाने के लिए बेचेगा, यह बात असंभव लग रही थी। लेकिन ऐसा लालची आदमी भी पृथ्वी पर था जिसने एक सौ गायों के लिये अपना भोला-भाला किशोर पुत्र बेच डाला। बालक को पता था कि वह किस उद्द्येश्य से ले जाया जा रहा है, अतः वह जार-बे-जार रो रहा था।
उसे बेचने और खरीदने वाले तो उसके प्रति पूरी तरह निर्मम थे, लेकिन एक ऋषि के हस्तक्षेप से बालक के प्राण बचे। वे भी उसे बलिवेदी तक ले जाने से तो नहीं रोक पाये, लेकिन उन्होंने उसे एक ऐसा मन्त्र बता दिया जिसकी आवृत्ति करते रहने के कारण उस पर कुठार के आघात का कोई असर नहीं हुआ और उसे बलि के अयोग्य घोषित कर दिया गया। नवजीवन प्राप्त बालक ने एक प्रश्न किया-‘मेरे पिता कौन हैं? जिसने जन्म दिया या जिसने ख़रीदा या वह देवता जिनको अर्पित किये जाने का संकल्प हुआ था!’
किसी महान् चिंतक ने अनुशासन दिया–इसके पिता होने का अधिकार सिर्फ उसी व्यक्ति को है, जिसके द्वारा बताये गए मंत्र के पाठ से इसकी जीवन रक्षा हुई है।