आजकल जो चुनावी माहोल है इसमें राज्यपाल और राष्ट्रपति भी ओछी टिप्पणियों से नहीं बच पा रहे है | कोई राष्ट्रपति को किसी पार्टी का एजेंट बताता है तो कोई राज्यपाल को कुत्ते की संज्ञा देता है | वजुभाई वाला को कुत्ता कहा जाना किसी सम्मानित व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार का पहला उदहारण नहीं था पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कई ऐसी संज्ञा मीडिया घरानों और विपक्षी पार्टियों ने दी जिसका सभ्य समाज मे जिक्र भी करना उचित नहीं समझा जायेगा | कभी कोई प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी को नेशनल चैनल पर बैठकर सरेयाम माँ बहन की गालियाँ देता है मगर फिर भी उस राज्य की सरकार और पुलिस उस व्यक्ति पर कोई मामला दर्ज नहीं करती है | ये तो सभी को पता है की आज के युग मे गालियाँ देने से लोगों मन को शांति मिलती है कतई इसका ये मतलब नहीं की जनप्रतिनिधि हो कर आप सरेयाम किसी को माँ बहन की गालियाँ दे कर अपना रोष शांत करेंगे | ये तो डकैतों वाली विचारधारा है जो श्री कृष्ण की जन्मभूमि पर कभी स्वीकार्य नहीं होगी |
२०१९ की जो रुपरेखा बन रही है उससे तो ये साफ झलक रहा है महागठबंधन बनने वाला है जो की राजग(NDA) का मुकाबला सीधे तौर पर करेगी | महागठबंधन का कतई ते मतलब नहीं सारा विपक्ष एक साथ हो जायेगा अभी भी कई महत्वाकांक्षी व्यक्ति है जो की निर्दलीय या अपनी पार्टी से महागठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ेंगे मतलब महागठबंधन के बाद भी एक तीसरा मोर्चा होगा | जैसा की चुनावी आंकड़े बता रहे है 272 सीट किसी भी पार्टी को मिलती नहीं दिख रही है तब अगर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनके उभरती है तो सबसे बड़ी मुश्किल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के सामने होगी क्या वे तब सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करेंगे ?
अगर वे ऐसा करते है तो इस आमंत्रण के बाद उन्हें किन किन ताजों से नवाजा जायेगा ये देखने लायक होगा | मामला लोकसभा चुनावों का है पुरे देश की नज़र सरकार गठन के साथ साथ राष्ट्रपति के लिए होने वाली भाषा के उपयोग पर भी होगी |
रामनाथ कोविंद को भी झेलनी पर सकती है वजुभाई वाला की तरह संकट
