एक लड़का बड़ा दुष्ट था। वह चाहे जिसे गाली देकर भाग खड़ा होता। एक दिन एक साधु बाबा बरगद के नीचे बैठे थे। लड़का आया और गाली देकर भागा। उसने सोचा कि गाली देने से साधु चिढ़ेगा और मारने दौड़ेगा, तब बड़ा मजा आएगा; लेकिन साधु चुपचाप बैठे रहे। उन्होंने उसकी ओर देखा तक नहीं।
लड़का और निकट आ गया और खूब जोर-जोर से गाली बकने लगा। साधु अपने भजन में लगे थे। उन्होंने समझ लिया कि कोई कुत्ता या कौवा चिल्ला रहा है। एक दूसरे लडके ने कहा-‘बाबाजी! यह आपको गलियां देता है न?’
बाबाजी ने कहा-‘हाँ भैया, देता तो है, पर मैं लेता कहाँ हूँ। जब मैं लेता नहीं तो सब वापस लौट कर इसी के पास रह जाती हैं।
लड़का-‘लेकिन यह बहुत ख़राब गलियां देता है।’
साधु-‘यह तो और ख़राब बात है। पर मेरे तो वे कहीं चिपकी हैं नहीं, सब-की-सब इसी के मुख में भरी हैं। इसका मुख गन्दा हो रहा है।’
गाली देने वाला लड़का सुन रहा था साधु की बात। उसने सोचा, ‘यह साधु ठीक कह रहा है। मैं दूसरों को गाली देता हूँ तो वे ले लेते हैं। इसी से वे तिलमिलाते हैं, मारने दौड़ते हैं और दुखी होते हैं। यह गाली नहीं लेता तो सब मेरे पास ही तो रह गईं।’ लडके को बुरा लगा, ‘छिः! मेरे पास कितनी गालियां हैं।’
अंत में वह साधु के पास गया और बोला-‘बाबाजी! मेरा अपराध कैसे छूटे और मुख कैसे शुद्ध हो?’
साधु-‘पश्चाताप काना तथा फिर ऐसा न करने की प्रतिज्ञा करने से अपराध दूर हो जायेगा।और राम-राम कहने से कहने से मुख शुद्ध हो जायेगा।’
साधु की नसीहत
