सही चुनाव

एक राजा को अपने दरबार के किसी उत्तरदायित्वपूर्ण पद के लिए योग्य और विश्वनीय व्यक्ति कि तलाश थी।
उसने अपने आस-पास के युवको को परखना शुरू किया, लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाया । तभी एक संयासी का पदापर्ण हुआ जो इस तरह यदा-कदा आ जाया करते थे ।
युवा राजा अपनी समस्याये उन्हें बताया करता था । इस बार भी उसने अपनी सम्मानीय अतिथि के सम्मुख मन की बात प्रकट की ।
‘अनेक लोगों पर मैंने विचार किया, अब दो युवा मेरी दृष्टि मे है।
तय नही कर पा रहा हूँ ; इन्ही दोनों में से एक को रखना चाहता हूँ।’
‘कोन है ये दोनों?’
‘ एक तो राज परिवार से ही सम्बंधित है।’
‘ और दूसरा?’
‘ दूसरे का सामाजिक स्टर नीचा है।’
‘ यानि? ‘
‘ इसका पिता पहले हमारा अत्यंत विश्वशनीय सेवक हुआ करता था । उसकी असामयिक हो गयी थी । उसी का यह पुत्र पढ़-लिख कर सुयोग्य बना है ।’
‘इसका स्वभाव और चरित्र?’
‘ इसके स्वभाव और चरित्र की चर्चा है, तभी तो इसके नाम का उल्लेख हुआ । इसका पिता सामान्य सेवक होने पर भी मंत्रियों से भी अधिक विश्वनिय था । इसमें पिता के वे गुण तो है ही, इसने अपने को सुयोग्य बनाने में भी खूब परिश्रम किया है । यह बहूत गंभीर और विचारवान् प्रतीत होता है।
‘ और राजपरिवार से संबंधित युवक? उसकी योग्यता?’
‘मामूली है ।’
‘ आपका मन किसके पक्ष में है ?’
‘ मेरे मन में दण्ड है, स्वामी !’
‘किस बात को लेकर’
‘राजपरिवार का रिश्तेदार कम योग्य होने पर भी अपना है। और …यह व्यक्ति बाहरी और मामूली घराने का है।’
‘ राजन्! रोग शरीर में उपजता है, वह भी अपना ही होता है, पर उसका उपचार जंगलों और पहाड़ों पर उगने वाली जड़ी-बूटियों से किया जाता है । ये चीजें अपनी और महलों की नही होकर भी हितकर होती है।’
धून्ध छँट गया ; राजा ने निरपेक्ष होकर सही आदमी की चुन लिया ।

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