ननद-भाभी के डेयरी कारोबार का टर्नओवर 2 करोड़

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मध्य प्रदेश के जबलपुर में ननद और भाभी का कारोबारी गठजोड़ रंग ला रहा है। दोनों डेयरी मिलकर चलाती हैं। इस डेयरी का टर्नओवर 2 करोड़ तक पहुंच गया है। ऑर्डर से डिलीवरी तक सबकुछ ऑनलाइन है। खास बात यह है कि 4 भैंसों से शुरू हुआ दूध का कारोबार 200 भैंसों तक पहुंच गया है। इतना ही नहीं, 10-12 गायें भी हैं। 400 से अधिक घरों तक सीधे दूध व इससे संबंधित अन्य प्रोडक्ट पहुंचाया जाता है। सबकुछ पूरा सिस्टेमेटिक है। अपना कारोबार तो किया ही है, 25 लोगों को काम भी मिला है। ननद-भाभी के इस सफलता की कहानी आप भी पढ़िए….

जबलपुर। 44 साल की वंदना अग्रवाल ने एनवायरमेंटल साइंस से मास्टर्स किया है जबकि 36 साल की मोनिका अग्रवाल वेटरनरी डॉक्टर हैं, दोनों मिलकर 400 घरों में दूध, पनीर और खोया सप्लाई करती हैं कस्टमर्स को मिल्क स्मार्ट कार्ड दिया है, जिसपर क्यूआर कोर्ड लगा है, दूध डिलीवरी करते समय मोबाइल से कार्ड को स्कैन करने पर उनके वॉलेट से पैसे कट जाते हैं

मध्य प्रदेश के जबलपुर की वंदना अग्रवाल और डॉक्टर मोनिका अग्रवाल रिश्ते में ननद – भाभी हैं। दोनों में जबरदस्त बॉन्डिंग है, पारिवारिक भी और बिजनेस पार्टनर के तौर पर भी। दोनों मिलकर जबलपुर में डेयरी चलाती है, वो भी हाईटेक डेयरी जहां पूरा सिस्टम कैशलेश और ऑनलाइन है, डिलीवरी से लेकर मेंटेनेंस तक सबकुछ। अभी ये लोग करीब 400 घरों में दूध, पनीर और खोया सप्लाई करती हैं। 44 साल की वंदना अग्रवाल ने एनवायरमेंटल साइंस से मास्टर्स किया है जबकि 36 साल की मोनिका अग्रवाल वेटरनरी डॉक्टर हैं। वंदना के पापा और हसबैंड दोनों वेटरनरी डॉक्टर हैं। यानी परिवार में तीन लोग वेटरनरी डॉक्टर हैं, इसलिए पशुओं से लगाव होना स्वभाविक है।

वंदना कहती हैं, ‘2008 में मेरे बेटे की तबीयत खराब हो गई। डॉक्टर ने कहा कि बाहर का दूध नहीं पिलाना है। पैकेट वाला तो बिलकुल भी नहीं। फिर भाई ने भैंस खरीदी और हमने घर का दूध बच्चे को पिलाना शुरू किया। कुछ समय बाद पापा ने कहा कि हमें कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे हमें भी शुद्ध दूध मिले और दूसरों को भी। हमें भी उनका सुझाव ठीक लगा। सोचा, चलो कोशिश करके देखते हैं। इसके बाद मेरे भाई ने चार भैंसों से दूध का छोटा-मोटा काम शुरू किया। तब हमने डेयरी खोलने का या इस तरह से स्टार्टअप शुरू करने के बारे में नहीं सोचा था।

वंदना बताती हैं, ‘ पिछले साल भाई ने कहा कि हमें इस काम को आगे बढ़ाना चाहिए। लेकिन परेशानी यह थी कि वह अकेले इस काम को कैसे मैनेज करेगा। फिर मैंने और भाभी ने यह तय किया कि हम दोनों मिलकर बिजनेस संभालेंगे, पापा ने भी हमारा भरपूर साथ दिया। इसके बाद हमने बैंक से लोन लिया और अपनी डेयरी शुरू कर दी।

वंदना प्रोडक्ट प्रमोशन और डिलीवरी का काम संभालती हैं। कहती हैं, ‘शुरुआत में कस्टमर्स तक पहुंचने का जरिया माउथ पब्लिसिटी था। जिन्हें हमारा प्रोडक्ट पसंद आता था वे इसके बारे में दूसरों को भी बताते थे। फिर हमने पोस्टर्स चिपकाए और पम्फलेट बांटे, अखबार में इश्तेहार भी दिया। इस तरह धीरे-धीरे हमारे कस्टमर्स बढ़ते गए। साथ ही हमारे यहां पशुओं की संख्या भी बढ़ती गई। अभी हमारे पास 200 से ज्यादा भैंस और 10-12 गायें हैं। 400 से ज्यादा घरों में हम दूध की सप्लाई करते हैं। सालाना 2 करोड़ रुपए का टर्नओवर है। 25 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं।
वंदना की भाभी मोनिका अग्रवाल प्रोडक्ट की क्वालिटी, पशुओं की देखभाल और अकाउंट मेंटेन करने का काम करती हैं। कहती हैं, ‘ एक डॉक्टर होने के नाते मैं पशुओं के स्वास्थ्य के साथ – साथ उनके दूध की क्वालिटी की भी जांच करती हूं। अगर किसी पशु की तबीयत खराब है या दूध में किसी तरह की दिक्कत है, तो हम उसे अलग आइसोलेट कर लेते हैं। सिर्फ स्वस्थ पशुओं के दूध को ही कस्टमर्स तक पहुंचाते हैं, किसी भी परिस्थिति में हम क्वालिटी से कॉम्प्रोमाइज नहीं करते हैं। यही हमारी ताकत है, यूएसपी है।

कैसे तैयार करते हैं प्रोडक्ट : वंदना बताती हैं कि गाय और भैंस के दूध को अलग- अलग कंटेनर में स्टोर करते हैं। इसके बाद दूध की क्वालिटी की जांच करते हैं। फिर इसे ठंडा करने के लिए बल्क मिल्क कूलर यानी बीएमसी में डालते है। वहां से दूध पैकिंग यूनिट में जाता हैं, जहां उसकी पैकिंग होती है। इसी तरह हम लोग पनीर और खोया भी तैयार करते हैं।

ऐप की मदद से ऑर्डर , डिलीवरी और पेमेंट : वंदना बताती हैं कि हमने दूध और दूसरे प्रोडक्ट की सप्लाई के लिए एक ऐप बनवाया है। 24K milk नाम से यह ऐप गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध है। इसे डाउनलोड करने के बाद अपना अकाउंट क्रिएट करना होता है। उसके बाद ऑनलाइन वॉलेट में कुछ अमाउंट ऐड करना होता है। इसके साथ ही सभी कस्टमर्स को हमने मिल्क स्मार्ट कार्ड दिया है, जिसपर क्यूआर कोर्ड लगा है। जब दूध डिलीवरी करने वाला उनके घर जाता है तो मोबाइल से उनके कार्ड को स्कैन करता है। कार्ड स्कैन करते ही उसके वॉलेट से पैसे कट जाते हैं। वंदना कहती हैं, ‘ अगर किसी कस्टमर को किसी दिन दूध नहीं चाहिए तो उसे हमें फोन करने की जरूरत नहीं है। वह ऐप पर अपना वैकेशन डाल सकता है। इतना ही नहीं अगर उसे एक्स्ट्रा दूध या कोई और प्रोडक्ट चाहिए तो उसे भी ऐप के जरिए वह बता सकता है। अगले दिन जब डिलीवरी बॉय उनके घर जाएगा तो दूध के साथ दूसरा प्रोडक्ट भी साथ लेते जाएगा। वो कहती हैं कि सबकुछ कैशलेश और ऑनलाइन होने की वजह से हिसाब- किताब रखने में भी आसानी होती है। रोज का हिसाब, किसको कब-कब कितने का प्रोडक्ट दिया और कब किसकी छुट्टी रही, सबकुछ ऑन रिकॉर्ड होता है। इसके साथ ही जो लोग हमारे रेगुलर कस्टमर नहीं हैं, वे भी हमें फोन करके ऑर्डर कर सकते हैं। हमारे डिलीवरी बॉय के पास एक्स्ट्रा स्मार्टकार्ड होता है जिससे वे स्कैन कर उन्हें दूध दे देते हैं। वंदना बताती हैं कि कोरोना के टाइम ऑनलाइन सिस्टम होने का बहुत फायदा हुआ। हमने अपने कस्टमर के घर के दरवाजे या दीवार पर क्यूआर कोर्ड चस्पा कर दिया था। हम उनके यहां दूध रखते थे और हमारे डिलीवरी करने वाले अपने फोन से क्यूआर कोर्ड स्कैन कर लेते थे।

बाहर से चारा खरीदने की जरूरत नहीं होती, गोबर से तैयार करते हैं खाद : वंदना कहती हैं, ‘ हमें पशुओं के लिए बाहर से चारा खरीदने की जरूरत नहीं होती है। हम अपने फार्म पर ही उनके लिए चारा उगाते हैं और उनके खाने की चीजें तैयार करते हैं। पशुओं के गोबर से हम लोग खाद तैयार करते हैं और आसपास के किसानों को बेच देते हैं। आगे हम गोबर गैस का प्लांट भी लगाने वाले हैं।

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