…और अब कारखाने का मालिक कहलाएंगे

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पटना। लॉकडाउन में नौकरी गंवाने वाले लाखों लोगों के लिए अबुलेस अंसारी नजीर बन गए हैं। बेरोजगारी का रोना रोने वालों के लिए मिसाल बन गए हैं। जी हां, हुनरमंद हो आदमी तो खाली बैठ ही नहीं सकता। लगन और मेहनत के बूते वह बुलंदियों को छू सकता है। लॉकडाउन में बेरोजगार हुए उन तमाम युवाओं के लिए यह कहानी सीख देगी जो अपने गांव-घर आकर खाली बैठ गए हैं। आप भी पढ़िए बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के अबुलेस की कहानी। कुछ माह पहले तक जो दूसरे के कारखाने में नौकरी करता था, वह आज अपना कारखाना खोलने जा रहा है। इनकी कंपनी को जीएसटी नंबर मिल चुका है, बाकायदा बैंक में करंट अकाउंट भी खुल गया है। 

लॉकडाउन ने बदली किस्मत : बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के अबुलेस अब नौकरी नहीं करेंगे। वह एक कारोबारी हो गए हैं। जल्द ही वह अपने साथ ही कई अन्य युवाओं को रोजगार भी देंगे। यह सब अगले कुछ दिनों में ही होगा। कश्मीर के अनंतनाग स्थित कारखाने में बतौर कारीगर काम करने वाले अबुलेस के लिए यह लॉकडाउन आफत बनकर नहीं आया, मौका बनकर आया। फरवरी में वह अपने घर छुटिटयां मनाने आए थे। मार्च में लॉकडाउन लगा। वह गांव में ही फंस गए और वापस कश्मीर नहीं जा पाए। ज्यादा समय गांव में रहने के बाद दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने का मौका मिला। गांव के लड़के लकड़ी के टुकड़ों को ही बैट बना लेते थे और खेलते थे। यह सब अबुलेस को खटकता था। इसी बीच, किसी लड़के ने अबुलेस को कहा कि आप तो बैट बनाते हो। क्यों नहीं हमलोगों के लिए बैट बना देते। फिर क्या था। अबुलेस जुट गए अपना हुनर दिखाने। अबुलेस को गांव में ही एक पॉपुलर विलो का सूखा पेड़ मिल गया। उन्होंने उसकी लकड़ी से कुछ बैट बनाकर दोस्तों को फ्री में दे दिए। बैट अच्छे थे। लोकल मार्केट में मिलने वाले बैट से काफी बेहतर। दोस्तों से बात और क्रिकेट प्रेमियों तक पहुंची। अब अबुलेस के पास खरीदार आने लगे। अबुलेस ने बिना संसाधन ये बैट बनाए और इन्हें 800 रुपए के रेट से बेच दिए। ऑर्डर आने पर उन्होंने अपने गांव के साथियों की मदद ली, जो उनके साथ कश्मीर में बैट बनाने का ही काम करते थे।

11 सितंबर को होगी डीएम से मुलाकात : अबुलेस बताते हैं कि मीडिया में खबर आने के बाद मैं मशहूर तो हुआ ही, मदद भी मिली। जिले के डीएम हमारी हर तरह से मदद कर रहे हैं। हम सभी दस साथियों का पार्टनरशिप एग्रीमेंट बन गया है। कंपनी का नाम, बैनर, स्टैम्प बन चुका है। कंपनी को जीएसटी नंबर मिल गया। करंट एकाउंट भी खुल गया। 11 सिंतबर को अबुलेस और उनके सभी साथियों से डीएम ने मिलने को भी बुलाया है। प्रशासन उनके डीपीआर के बाद उन्हें कारोबार शुरू करने के लिए आर्थिक मदद देगा।

सारे बैट बिक गए : अबुलेस ने बताया, “हमने बैट बनाना शुरू किया। सभी बैट लोकल लोगों ने खरीद लिए। हमारे घर के पास की लोकल मार्केट के लोग मेरे पास पहुंचे। इन दुकानदारों की दुकान पर हमेशा 300-400 बैट रहते हैं। इन लोगों ने कहा कि जो बैट आप बना रहे हैं, उससे तो हमारी दुकानदारी ही बंद हो जाएगी। आप अपने हाथ से बैट बनाकर सस्ते में बेच दे रहे हैं। इसलिए, आप जितना भी प्रोडक्शन करें वो हमें डायरेक्ट बेच दें। रिटेल सेल हम कर देंगे।”

मेरठ से आएगी लकड़ी : बैट बनाने के लिए लकड़ी कहां से आएगी? जब हमने ये सवाल किया तो कल तक मजदूर रहे अबुलेस ने किसी परिपक्व बिजनेसमैन की तरह जवाब दिया। बोले, मेरठ के इंग्लिश विलो के लिए बात हो गई है। पैसा सैंक्शन होते ही करीब साढ़े तीन लाख की लकड़ी वहां से आ जाएगी। डेढ़ लाख में हैंडिल, ग्रिप, स्टिकर और बाकी सामान खरीदेंगे। कारखाना डालने के लिए पांच लाख का खर्च आएगा। यानी, दस लाख में हम अपना कारोबार शुरू कर देंगे। बाकी आगे चलकर कश्मीर से कश्मीर विलो भी मंगाएंगे। क्या अब वापस कश्मीर जाएंगे? इस सवाल के जवाब में अबुलेस कहते हैं कि अब हम सभी यहीं अपना कारोबार आगे बढ़ाएंगे।

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