त्रिलोचन महतो शायद भारत मे 1% लोग भी इनका नाम नहीं जान रहे होंगे 20 वर्ष की आयु मे राजनीति का शिकार होकर आज हमारे बिच नहीं रहे | त्रिलोचन महतो भाजपा का एक युवा कार्यकर्ता था जो की पुरुलिया के बलरामपुर थाना क्षेत्र मे पंचायत चुनावों मे भाजपा की तरफ से जोर शोर से प्रचार मे लगा हुआ था | पंचायत चुनावों के कुछ दिनों बाद एक पेड़ से लटका हुआ एक व्यक्ति का शव मिला जिनकी पहचान त्रिलोचन महतो के रूप मे हुई | हत्यारों ने शव के ऊपर ही लिख दिया कि “बीजेपी के लिए काम करने का यही हश्र होगा” | स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने बिना जाच मामले को राजनैतिक हत्या की जगह आपसी रंजीश बता दी | तृणमूल के दिग्गज नेता अभिषेक बनर्जी ने इसे बजरंग दल और भाजपा के द्वारा करायी गयी हत्या बता दी शायद उनके पास कुछ ठोस सबूत होगा अपनी बात को लेकर | त्रिलोचन के पिता का कहना है कि मै भाजपा का कार्यकता हु मै अपने बेटे की हत्या क्यों करूँगा ? पर शायद हमारी नेशनल मीडिया अभी महागठबंधन को लेकर काफी व्यस्त है उन्होंने भारत मे शांति बनाये रखने के लिए इस मामले को तुल नहीं दिया | जातिवाद मे तो जाना उचित नहीं पर त्रिलोचन महतो एक दलित भी था पर शायद ये दलित जिग्नेश ,मायावती जैसे लोगो के लिए वोट नहीं जुटा सकता था सो इनलोगों अपना मुँह इस मुद्दे पर बंद रखना उचित समझा |
शायद त्रिलोचन महतो नाम के व्यक्ति मे वो टीआरपी हमारी मीडिया को नहीं मिल पायेगा जो कुछ अन्य जात धर्म या नाम वाले व्यक्ति से मिलता | कब तक हमारी नेशनल मीडिया खुद को दिल्ली तक समेटे रखती है यह भी एक बड़ा प्रशन है | कुछ दिनों पहले सीपीआई (एम) के दो कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्या काकद्वीप मे गयी थी दो चार दिन तक राज्य मे चंद लोगो ने सोशल मीडिया पर हो हल्ला मचाया फिर कर्नाटका चुनाव मे राष्ट्र को बचाने के लिए कुमारस्वामी की सरकार बनाने मे व्यस्त हो गये |
अब बात आती है कि क्या अलग विचारधारा के लोग एक जगह शांतिपूर्ण तरीके से नहीं रह सकते ? आज के समयानुसार जवाब ना है लोग अब एक दुसरे को खून पी कर ही शांत बैठना चाहते है | जब लोग ही नहीं रहेंगे तो सरकारे राज किस पर करेगी ये भी सोचने वाली बात है | जवाहर लाल नेहरु और सुभास चन्द्र बोस इनके विचारधारा भी कभी नहीं मिले इसका मतलब ये नहीं था की ये दोनों एक दुसरे के खून के प्यासे हो गये | अब शायद बोस और नेहरु जैसे लोग नहीं रह गये अब देश जात ,धर्म और पार्टी देख के चलती है |