पूर्व दिशा में सूर्योदय होता है और उदित होते सूर्य की किरणों का धर्मं शास्त्रों में ही नहीं, विज्ञान में भी बड़ा महत्व है। अथर्ववेद में कहा गया है कि उदित होते सूर्य में मृत्यु के सभी कारणों (समस्त रोग-विकारों) को नष्ट करने की छमता है। इसी वेद में दूसरे स्थान पर आया है कि मृत्यु के बंधनों को तोड़ने के लिये सूर्य के प्रकाश से संपर्क बनाये रखो। एक अन्य स्थान पर आया है कि सूर्य के प्रकाश में रहना अमृतलोक में रहने के सामान है।
सूर्य को साक्षात श्रीहरि नारायण का प्रतीक माना जाता है। सूर्य ही ब्रह्मा के आदित्य रूप हैं। एकमात्र सूर्य ही ऐसे देव हैं, जिनके पूजन-अर्चन का प्रत्यक्ष फल प्राप्त होता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
सूर्योपनिषद के अनुसार सभी देव, गंधर्व और ऋषि-मुनि सूर्य की रश्मियों में निवास करते हैं। समस्त पुण्य, सत्य और सदाचार में सूर्य का ही अंश माना गया है। इसी कारण सूर्य की रश्मियों और उनके प्रभाव की प्राप्ति के लिए शुभ कार्य पूर्व दिशा की और मुख करके संपन्न करने का विधान है।
शुभ कर्म पूर्व दिशा की ओर मुँह करके संपन्न करने का विधान क्यों है?
