आदमी जब संसार में आया तो उसकी वापसी का निर्णय भी उसकी सहमति से हो गया था। उसे पुराना शरीर छोड़ कर नया पाने की बात अच्छी लगी थी। लेकिन भगवान जानते थे कि यह यथावत् बने रहने की इच्छा से ग्रस्त हो जायेगा। इसलिए उन्होंने कहा कि जब तुम्हारे दिन पूरे हो जायेंगे तो मैं इशारे से बता दूंगा, ताकि तुम लौटने के लिए तैयार हो जाओ।
आदमी संसार में सुख-दुःख झेलता जीने लगा। जीने की आदत में पड़ा, वह यहाँ से लौट जाने की बात भूल जाना चाहता था; उस चर्चा को अशुभ मानने लगा था। लेकिन जो पूर्व निर्धारित था, वह तो हुआ ही; उसे लौटना पड़ा। उसने भगवन से झुंझला कर कहा – ‘आपने तो कहा था कि वापस लेन के पहले इशारे से बता देंगे, लेकिन अचानक उठा लाये!’
‘ मैंने तो संकेत दिए थे।’ ‘कब?’ ‘कई बार।’ ‘कैसे संकेत?’ ‘तुम्हारे आँखों की ज्योति मंद कर दी, एक-एक कर सारे दांत थोड़ दिए, सर के केशों को सन की तरह बना दिया, पैरों में चलने की ताकत नहीं रहने दी, स्मृति दुर्बल करा दी – अब और कैसा संकेत तुम चाहते थे?’
संकेत
