एक ब्राह्मण देवता थे। बड़े गरीब और सीधे थे। देश में अकाल पड़ा। अब भला बाह्मण को कौन सीधा दे और कौन उनसे पूजा पाठ कराये। बेचारे ब्राह्मण को कई दिनों तक भोजन नहीं मिला।
ब्राह्मण ने सोचा-” भूख से मरने से तो प्राण दे देना ठीक है।”
वे जंगल में मरने के विचार से गए। मरने के पहले उन्होंने शुद्ध हृदय से भगवान का नाम लिया और प्रार्थना की। इतने में एक शेर दिखाई पड़ा। ब्राह्मण ने कहा-” मैं तो मरने आया ही था। यह मुझे खा ले तो अच्छा।”
शेर ने पास आकर पूछा-“तू डरता क्यों नहीं?”
ब्राह्मण ने सब बातें बता कर कहा-“अब तुम मुंह झटपट मार कर खा डालो।” सच्ची बात यह थी कि उस वन के देवता को ब्राह्मण पर दया आ गई थी। वही शेर बन कर आया था। उसने ब्राह्मण को पांच सौ अशर्फियाँ दीं। ब्राह्मण घर लौट आया। सबेरे जब ब्राह्मण अशर्फी ले कर वहां के बनिए से आटा-दाल खरीदने गया तब बनिए ने पूछा कि अशर्फी कहाँ मिली? ब्राह्मण ने सच्ची बात बता दी और वह आटा-चावल आदि ले कर घर आ गया।
बनिया बड़ा लोभी था। वह रात को अशर्फियों के लोभ से वन में गया। उसने भी जीभ से भगवान का नाम लिया और प्रार्थना की।शेर आया। बनिए ने कहा-“तुम झटपट मुझे खा कर पेट भर लो।”
शेर ने कहा-“मैं तेरे जैसे लोभी को अवश्य खा जाता। पर किसी भी बहाने भगवान का नाम तो तूने लिया ही है, अतः तुझे मारूँगा नहीं; केवल थोडा सा दंड दूंगा।”
शेर ने बनिए को एक पंजा मारा। उसका एक कण चिथड़े-चिथड़े हो कर उड़ गया। एक आँख फूट गई। उसे लोभ का यही पुरस्कार मिला।
शेर का थप्पड़
