२०१९ चुनावो मे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व के सामने विपक्ष तितर बितर और निराश नज़र आ रही है क्योंकि कही काम “मोरल विक्ट्री ” (गुजरात चुनाव के बाद विख्यात राजनैतिक महत्व वाला शब्द ) से चल रहा है तो कही तीन राज्यों के चुनाव हारने के बाद किसी पंचायत चुनाव मे जीत से | कुछ राजनैतिक पार्टियों ने तो गोरखपुर और फूलपुर संसदियो सीटों पर हुए उपचुनाव मे सपा बसपा गढ़बंधन के जीत को भी बीजेपी की साजिश बतायी और कहा ये ईवीएम पर लोगों के विश्वास को बनाये रखने की कोशिश है जिसका लाभ बीजेपी २०१९ चुनावों मे उठाना चाहेगी | बिखरे हुए तीसरा मोर्चा जिसका अस्तीत्वा दूर दूर तक कही दिखायी नहीं पड़ रहा है जिसके मुखिया माने जा रहे लालू प्रसाद यादव आज रांची जेल मे अपनी सजा काट रहे है | तीसरा मोर्चा का भविष्य अब ठन्डे बस्ते मे दिख रहा है |
अगर हम ईवीएम से ऊपर उठे तो बीजेपी के खिलाफ एकजुट हो रहा विपक्ष अपने इस निराशा और हताशा के बिच सिर्फ राहुल गाँधी को ही आशा के रूप मे देख पा रहा है | सपा बसपा जहा सिर्फ अपनी पैठ उत्तर प्रदेश मे बनाये रखने के लिए संघर्ष करते दिख रही है वही सीपीएम त्रिपुरा हार के मंथन मे वयस्त है तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी का नेतृत्व भी शायद ही कही कांग्रेस को रास आये | कुल मिला जुलाकर एकजुट विपक्ष के पास अपने नेता का रूप देने क लिए बचते है राहुल गाँधी | राहुल गाँधी को जहा एक नेशनल पार्टी के उम्मीदवार होने का लाभ मिल रहा है वही गाँधी नेहरु परिवार से जुडी हुई छवि भी उन्हें लाभ पंहुचा रही है |