महान चित्रकार आगस्टीन को अपनी कला से अत्यंत प्रेम था। वही उनकी आजीविका का साधन भी थी। दुर्भाग्यवश उनको गठिया हो गया और उनका रोग इतना बढा कि उनके हाथ -पैरों ने काम करना बंद कर दिया । जब उनके लिए उँगलियों से ब्रश पकड़ना भी कठिन हो गया तो वे उँगलियों में रस्सी से ब्रश बांधकर काम करने लगे । ऎसे करने में उन्हें भयंकर पीड़ा होती परंतु कला के प्रति उनकी लगन कम नहीं पड़ी । किसी ने उनसे पूछा — ” आप इतने वृद्ध और रुग्ण होने के बाद भी अपने कार्य के इतने दत्तचित्त कैसे रह पाते है ?”
आगस्टीन ने उत्तर दिया —-“यदि कोई कलाकार अपनी कृति और प्रगति को देखकर संतोष कर ले या अहंकार करने लगे तो समझना चाहिइये कि उसके विकास का अंत हो गया । प्रगति के शिखर पर पहुचने के लिए उत्कट आकांक्षा और कठोर परिश्रम की आवश्यकता होती है । प्रगति अनंत है, इसलिए उसके प्रति समर्पण भी असीम होनी चाइये ।” उनकी अपनी कला के प्रति तन्मयता ने ही उन्हें छेत्र में शिखर पर पहुचाया ।