1957, दूसरी लोक सभा में अटल जी 33 साल की उम्र में पहली बार साँसद बने. उस समय लोक सभा में बैठने के लिए आज जैसी कुर्सियाँ नहीं होती थी और न ही संबोधन के लिए सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली ( public adress system ) थे |
सदन में विदेश नीति पर चर्चा शुरू हुयी, अटल जी को भी बोलने का मौका मिला 472 सांसदों के सदन में आखिरी लाइन पर थे अटल जी .. और ज्योही उनका भाषण चालू हुआ, सदन में सन्नाटा, सिर्फ और सिर्फ अटल जी की आवाज !
भाषण ख़तम हुआ और प्रधानमंत्री नेहरू प्रथम पंक्ति से चल कर उनके पास आये, अटल जी के कंधे पर हाथ रख कर शाबाशी दी, क्यों की विदेश नीति पर बेहतरीन भाषण था उनका…
प्रधानमंत्री नेहरू ने पूछा “आप कौन सी रियासत के राज कुमार हो ?”
अटल जी ने सादगी से जवाब दिया, “मै राजकुमार नहीं हूँ, मै एक गरीब स्कूल मास्टर का बेटा हूँ!”
नेहरू जी ने पूछा “विदेश में पढ़े हो?”
अटल जी ने कहा “विदेश तो क्या, मै तो कभी झुमरितलैय्या भी नहीं गया !”
नेहरू ने आश्चर्यचकित होकर कहा “तुम कैसे जानते हो इतना सब कुछ विदेश नीति के बारे में?”
अटल जी ने कहा “किताबो के अध्यन से”…
नेहरू ने कहा “तुम जरुर एक दिन भारत के “प्रधानमंत्री” बनोगे. !”